तब अनहद..

#कविता

व्याकुल है आज बहुत ये दिल
यादों का दिल में मचा है शोर
खुद ही खुद से बातें करके
अपना आप पहचाना है

मोह माया इक मिथ्या भ्रम है
प्रभु नाम ही शाश्वत सत्य है
तन तो एक हाड़ मांस का पिंजरा
आत्म जीव जिसमें कैद हुआ है

महाप्रयाण को जब प्रस्थान करेंगे
मुक्ति तभी इस पिंजर से पायेंगे
आयेगा जब समय निर्वाण का
मन का तब हर विषाद छटेगा

प्रुभु से मिलन का जब द्वार खुलेगा
तब अनहद मन में छा जायेगा
नश्वर जग में तेरा कुछ भी नहीं है
गीता का भी एक सार यही है।।

--डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश