बत्तीसी

#हास्य-कविता, #कविता

बत्तीसी जब करेगी कीर्तन
और मुंह पोपला हो जाएगा
तब नन्हें मुन्ने नाती पोतों संग
खूब अठखेलियां करेंगे हम
नन्हे बच्चों संग मैं भी फिर
एक नन्हीं बच्ची बन जाऊंगी

बत्तीसी...

बचपन और जवानी में
रह गये थे जो ख्वाब अधूरे
उन अधूरे सपनों में अपने
मैं भरुंगी फिर से रंग नये
बचपन और जवानी की
सब यादें फिर से जी लूंगी

बत्तीसी...

मोह माया से जंग लड़ूंगी
अपना आप पहचानूंगी
फल की आशा नहीं करुंगी
बस अपना फ़र्ज़ निभाऊंगी
जीवन खुश होकर जियूंगी
अपना सारा विषाद मिटाऊंगी

बत्तीसी...

--डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश