कैकेई का संताप

#कविता

रघुवंश की रीति निभाने को मैं कलंकिनी कहलाई

मां बनकर भी मैं संसार में सदा एक बुरी मां कहलाई

विधाता ने यही नियति लिखी थी मेरी, मैंने वही निभाई

हेय दृष्टि से देखा सबने ,मेरी पीड़ा किसी को समझ न आई

पुत्र राम मुझे सबसे प्रिय था हृदय के मेरे वही निकट था

जिस कर्म को निभाने वो इस धरती पर अवतरित हुआ था

उसके उसी कर्तव्य मार्ग पर चलाने हेतु मैंने ये प्रपंच रचा था

पाषाण बना हृदय को,उसे चौदह वर्ष का वनवास दिया था

पिता को दिया वचन राम ने सहर्ष स्वीकार किया था

सीता हरण,वध रावण का सब पहले से ही विधि ने रचा था

वनवासी बनकर ही राम ने राक्षसों का संहार किया था

पुरुषोत्तम बनकर राम ने रघुवंश का मान बढ़ाया था

लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न संग राम ने भातृ प्रेम का पाठ पढ़ाया

मुझे कुमाता कहकर धिक्कारे जाने का क्षोभ नहीं होता है

अपने पुत्र राम की ख्याति से मेरा हृदय सदा गर्वित होता है

--डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश